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दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे पर बन रहा है एशिया का सबसे बड़ा वाइल्डलाइफ़ कॉरिडोर

07:22 PM May 14, 2023 IST | Shishir Agrawal
दिल्ली देहरादून एक्सप्रेसवे पर बन रहा है एशिया का सबसे बड़ा वाइल्डलाइफ़ कॉरिडोर

साल के अंत यानि दिसंबर में भारत को एक और एक्सप्रेस वे मिल जाएगा. ख़बरों के मुताबिक दिल्ली से देहरादून को जोड़ने वाले एक्सप्रेसवे का उद्घाटन इस साल दिसंबर में किया जाएगा. दिल्ली से देहरादून का सफ़र 6 घंटे से घटाकर 2 घंटे कर देने के अलावा यह एक्सप्रेस वे इसलिए भी ख़ास है क्योंकि इसमें 12 किलोमीटर का वाइल्ड लाइफ़ कॉरिडोर भी बनाया जाना है. ऐसा माना जा रहा है कि यह एशिया का सबसे बड़ा वाइल्डलाइफ़ कॉरिडोर होगा. इस कॉरिडोर में 6 एनिमल अंडरपास, 2 एलीफैंट अंडरपास के साथ ही 2 बड़े और 13 छोटे पुलों का निर्माण किया जाना है.

Delhi Dehradun Expressway 12 KM wildlife corridor map
Created by Ground Report

दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे का आखिरी 20 किमी का हिस्सा राजा जी नेशनल पार्क के इको-सेंसिटिव जोन से होकर गुज़रेगा, जहां एशिया का सबसे लंबा एलिवेटेड वाइल्डलाइफ कॉरिडोर (12 किमी) बनाया जा रहा है, जिसमें 340 मीटर डाट काली सुरंग भी शामिल है.

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वाइल्डलाइफ़ कॉरिडोर क्या होते हैं?

मानवीय विकास और पर्यावरण संरक्षण साथ-साथ करने के उद्देश्य से वाइल्डलाइफ़ कॉरिडोर का निर्माण किया जाता है. यह किसी भी विकास परियोजना के साथ जुड़ा वह हिस्सा होता है जहाँ प्राकृतिक मानकों को ध्यान में रखते हुए ऐसे निर्माण किए जाते हैं जिससे जानवरों और मानव का टकराव कम हो सके. साधारण भाषा में इसे ऐसे समझिये कि एक्सप्रेस वे को बनाते हुए कुछअंडर या ओवर ब्रिज ऐसे बनाए जाएँगे जिनसे होते हुए जानवर सड़क पार कर सकें और वाहनों से टकराने के कारण उनकी मौत न हो. 

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मोटे तौर पर वाइल्ड लाइफ़ कॉरिडोर 2 प्रकार के होते हैं - 

प्राकृतिक वाइल्डलाइफ़ कॉरिडोर

भारत सहित दुनिया के बहुत से हिस्सों में जंगलों और पहाड़ों की लम्बी श्रृंखला है. इन जगहों की रचना प्राकृतिक रूप से ऐसे हुई है जिसमें अलग-अलग तरह के जानवर, मछलियाँ या पक्षी निवास करते हैं. इन श्रृंखलाओं को प्राकृतिक वाइल्डलाइफ़ कॉरिडोर कहा जाता है. इसे एक उदाहरण के ज़रिए समझते हैं. 

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कान्हा और पेंच राष्ट्रिय उद्यान देश के 2 महत्वपूर्ण राष्ट्रिय उद्यान हैं. इन दोनों राष्ट्रिय उद्यानों के मध्य में स्थित कान्हा-पेंच टाइगर कॉरिडोर देश का महत्वपूर्ण प्राकृतिक कॉरिडोर है. लगभग 16 हज़ार वर्ग किलोमीटर में फैले मध्यप्रदेश के इस हिस्से के अंतर्गत लगभग 79 जंगल आते हैं. इसमें से 21 जगहों में बाघ, 59 में तेन्दुए, 25 जगहों में ढोल, 48 जगहों में स्लॉथ बियर और 8 जगहों में लकड़बग्घे पाए जाते हैं. 

kanha pench wildlife corridor map
Source: https://www.mdpi.com/2071-1050/12/12/4902

जंगली जानवर आम तौर पर भोजन की तलाश में या फिर शिकारी से बचने के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं. ऐसे में जंगल के बीच में या उसके आस-पास किसी भी तरह की मानवीय दखल उन्हें ख़तरे में डाल देती है. जैसे बाघ या शेर आम तौर पर अपने इलाके में रहते हैं. इस इलाके में निवास करते हुए वे शिकार एवं प्रजनन क्रियाओं को करते हैं. मगर दूसरे बाघ अथवा शेर द्वारा हमला करने एवं परास्त होने पर उन्हें दूसरी जगह अपना इलाका बनाने के लिए जाना पड़ता है. ऐसे में वाइल्डलाइफ कॉरीडोर का महत्व बढ़ जाता है.   

मानव निर्मित वाइल्डलाइफ़ कॉरिडोर

जैसा की नाम से स्पष्ट है कि यह कॉरिडोर वन्य जीवन को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से इंसानों द्वारा बनाए जाते हैं. यह कॉरिडोर्स किसी भी जगह के स्थानीय घुमंतु जानवरों को ध्यान में रख कर बनाये जाते हैं. ऊपर हमने दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे के उदाहरण से बात शुरू की थी. मगर उसे शुरू होने में अभी समय है. ऐसे में कनाडा के बैंफ़ नेशनल पार्क में बने वाइल्ड लाइफ़ कॉरीडोर के बारे में जानते हैं. 

Trans-Canada Highway through wildlife bridge
ट्रांस कैनेडा हाईवे पर बना वाईल्डलाईफ ब्रिज, पिक्चर क्रेडिट- फ्लिकर

साल 1996 में ट्रांस-कनाडा हाइवे पर 2 ओवर पास का निर्माण किया गया. हर ओवर पास की कीमत लगभग 1.5 मिलियन डॉलर थी. इसके बाद इसी हाइवे पर और भी अंडर पास का निर्माण किया गया. इस तरह के निर्माण से वाहनों से टकराकर होने वाली मौत में चमत्कारिक बदलाव आए. इस कॉरिडोर के कारण यह हादसे 80 प्रतिशत तक कम हो गए. यह कॉरिडोर मानव निर्मित वाइल्ड लाइफ़ कॉरीडोर में सबसे अच्छे कॉरीडोर में गिना जाता है. 

क्यों ज़रुरी हैं वाइल्डलाइफ़ कॉरिडोर

वाइल्डलाइफ कॉरिडोर को वन्य जीव संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण माना जाता है. यह एक ओर जहाँ जानवरों की वाहनों से टकराकर होने वाली मौत को कम करते हैं वहीँ दूसरी ओर इससे वन्य जीवों की मानवीय हस्तक्षेप के कारण कम हुई संख्या को बढ़ाने में भी मदद मिलती है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इनके निर्माण और उसके साथ में स्थानीय जानवरों के एक जगह से दूसरी जगह मूवमेंट करने के तरीके (migratory habits) पर और शोध किए जाने चाहिए ताकि इन्हें और प्रभावी बनाया जा सके. मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के डॉ. निक हैडेड बीते 30 सालों से इसी दिशा में शोध कर रहे हैं. उन्होंने तितलियों के लिए बनाए गए एक कॉरिडोर का अध्ययन किया और उन्हें चौकाने वाले परिणाम प्राप्त हुए. एक वेबसाईट से बात करते हुए वह बताते हैं, “केवल तितलियाँ ही नहीं बल्कि पक्षी, छोटे स्तनपाई, परागणकर्ता और ऐसे पौधे जो चिड़ियों या हवा द्वारा नष्ट किए गए थे सभी को इस कॉरिडोर से फायदा मिला जो तितलियों के लिए बनाया गया था.”

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Shishir is a young journalist who like to look at rural and climate affairs with socio-political perspectives. He love reading books,talking to people, listening classical music, and watching plays and movies.

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