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महिला कुली के रूप में आत्मनिर्भर दुर्गा

02:21 PM Sep 18, 2023 IST | Charkha Feature
महिला कुली के रूप में आत्मनिर्भर दुर्गा

Pooja Yadav from Bhopal, MP | देश में ऐसे कई अवसर आए हैं जब महिलाओं ने अपने हौसले और संघर्ष से आत्मनिर्भरता की अनोखी दास्तान लिख दी है. फिर चाहे वह आदित्य L1 की प्रोजेक्ट डायरेक्टर के तौर पर उनकी भूमिका हो या फिर एक ऑटो रिक्शा ड्राइवर के रूप में उनका काम हो. आज देश का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां महिलाओं ने अपनी सशक्त भूमिका अदा न की हो. ऐसी ही एक युवा महिला कुली दुर्गा और उसके संघर्ष की कहानी है, जो किसी भी चुनौतियों से हार नहीं मानने की प्रेरणा देती है. मध्यप्रदेश के बैतूल रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की मदद के लिए तत्पर रहने वाली 25 वर्षीय दुर्गा का संघर्ष बाहर से सिर्फ इतना दिखाई देता है कि वह रेल यात्रियों के सामान को ट्रेन में चढ़ाने या उतारने का काम करती हैं. लेकिन इस संघर्ष के पीछे उसका एक और संघर्ष है, जो पुरुष प्रधान समाज को प्रेरणा देने वाला है. उसके संघर्ष को इसलिए भी जानना जरूरी है, क्योंकि आज के परिवेश में युवा पीढ़ी मामूली चुनौतियों के सामने हार मान कर अपने अमूल्य जीवन को समाप्त करने जैसा कदम उठा लेती है. लेकिन दुर्गा ने ऐसी ही चुनौतियों से घबराने की जगह उसका डटकर मुकाबला किया.

महिला कुली दुर्गा का जीवन संघर्ष

करीब 10 वर्ष पूर्व माता-पिता के देहांत के समय दुर्गा की उम्र मात्र 15 वर्ष थी. परिवार के नाम पर उसके साथ विधवा बड़ी बहनें और उनके बच्चे हैं. इसमें से एक बहन की मृत्यु भी हो चुकी है. परिवार की आय के लिए उसने कुली का काम शुरू किया. हालांकि वह स्वयं मोतियाबिंद की शिकार है. उसकी एक आंख का ऑपरेशन हो चुका है और दूसरी आंख का होना बाकी है. इसके बावजूद वह कुली का काम करना नहीं छोड़ती है. सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक बैतूल रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्मों पर दौड़ती-भागती है. जिससे महीने के 8 से 10 हजार रुपये की आमदनी हो पाती है. इन्हीं चंद रुपयों से वह अपनी जिंदगी की खुशियां खरीदती है. लेकिन अब समय के साथ उसके सामने अपना घर बसाने की चुनौती भी है. जिसमें कुली का काम रुकावट बन रहा है. दुर्गा बताती है कि विवाह योग्य उम्र हो चुकी है. कुछ लड़के पक्ष के लोगों से रिश्तों की बात हुई लेकिन कुली के काम के चलते रिश्ता नहीं हो रहा है. लड़के पक्ष के लोगों का कहना है कि विवाह तभी होगा, जब वह कुली काम छोड़ देगी. जिसके लिए वह तैयार नहीं है क्योंकि उसके इसी काम से बच्चों की परवरिश जुड़ी हुई है.

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दुर्गा कहती है कि "यदि मैंने काम छोड़ दिया तो मेरे मां बनने से पहले तीन बच्चों का जीवन संकट में पड़ सकता है और मैं ऐसा नहीं होने देना चाहती."

दुर्गा बोरवर कैसे बनीं कुली?

वह कहती है कि अपनी बहनों के बच्चों के जीवन को अंधेरे में छोड़कर वह घर नहीं बसा सकती. हालांकि वह यह भी स्वीकार करती है कि कुछ लड़के वाले ऐसे भी मिले, जो कुली का काम जारी रखते हुए उसके साथ विवाह के लिए राजी हुए थे, लेकिन दुर्गा को उनकी नीयत पर शक था. इसलिए उसने उन रिश्तों को ठुकरा दिया. दरअसल दुर्गा के पिता मुन्ना बोरवर स्वयं एक सफल कुली थे और बैतूल स्टेशन पर ही सेवाएं देते थे. उनका बिल्ला नंबर-11 था, जो उनकी मृत्यु के बाद उनकी सबसे छोटी बेटी और बैतूल रेलवे स्टेशन की एकमात्र युवा महिला कुली दुर्गा बोरवर के पास आ गई. दुर्गा ने इस बिल्ला नंबर को पाने में काफी मेहनत की है. 2017 में उसके पिता का निधन हो गया था और कुछ महीने के अंतराल में उसकी मां भी चल बसी थी. माता-पिता दोनों ही मेहनती थे. उसकी दोनों बहनों का विवाह उसके पिता कर चुके थे. लेकिन जल्द ही दोनों बहनें विधवा भी हो गई. दुर्गा की एक बहन रेखा टीबी की मरीज थी, जिसका 2019 में निधन हो गया. उसकी 5 वर्ष की बेटी दुर्गा के पास है. दूसरी बहन राजकुमारी के दो बच्चे नेहा और रोहित की परवरिश में भी दुर्गा मदद करती है.

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"दुर्गा साहसी है, देर रात तक स्टेशन पर डटी रहती है. उसके काम से यात्रियों को मदद मिलती है. बैतूल रेलवे स्टेशन के पूर्व प्रबंधक वीके पालीवाल कहते हैं कि दुर्गा का जीवन वाकई संघर्षों से भरा है. वह कभी भी न तो कमजोर दिखाई दी और न ही उसने कभी हार मानी है. उसने हर मुश्किलों का सामना डटकर किया है. उसका जीवन सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है. विशेषकर आज की युवा पीढ़ी के लिए, जो मामूली संकटों से घबरा कर आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं. ऐसे युवाओं को हर पल दुर्गा के जीवन से सीख लेनी चाहिए."

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बैतूल जिला में दुर्गा के प्रति काफी सम्मान है. यही वजह है कि इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के कार्यक्रम में जिलाधिकारी द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया है. इससे पूर्व में भी अलग-अलग मंचों पर उन्हें सम्मान प्राप्त होते रहे हैं. बहरहाल, न केवल दुर्गा बल्कि कटनी जंक्शन पर काम कर रही संध्या मारवी, भोपाल जंक्शन पर काम कर रही लक्ष्मी, जयपुर स्टेशन पर काम कर रही मंजू और वाराणसी जंक्शन पर काम कर रही उम्रदराज़ कमलावती जैसी महिला कुली जहां आत्मनिर्भरता और स्वालंबन की प्रतीक हैं, वहीं उनका जीवन महिलाओं को कमज़ोर और चारदीवारी में कैद रखने वाले पितृसत्तात्मक समाज की सोच पर भी एक करारा तमाचा है. (चरखा फीचर)

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