"साहब, मैं क्या बताउं कितना नुकसान हुआ हैं, आप खुद देख सकते हैं, खेत में सूखी पड़ी फसल खुद चीख-चीख कर मेरी बर्बादी की दास्तां बयां कर रही हैं।" किसान कुबेर सिंह हमें अपने धान के खेत दिखाते हुए कहते हैं।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 30 किलोमीटर दूर स्थित बैरसिया के मेंगराकला गांव में किसान कुबेर सिंह ने अपने 10 एकड़ खेत में धान की फसल बोई थी, जो बारिश न होने की वजह से पूरी तरह चौपट हो चुकी है। कुबेर सिंह निराश होकर कहते हैं "हमारा साथ न तो मौसम दे रहा है और न ही सरकार, अगस्त माह की शुरुवात में बेमौसम गर्मी पड़ने और बारिश न होने से धान की पूरी फसल खराब हो गई, उधर गर्मी की वजह से मक्का की फसल भी जल्दी पकने लगी। फसल को बचाने के लिए खेतों में नमी बनाए रखना ज़रुरी है इसीलिए अतिरिक्त सिंचाई कर रहे हैं और भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं कि बारिश हो।"
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धान के खेतों में पड़ी दरारें, ग्राम मोहनियाखेड़ी, जिला रायसेन
रायसेन जिले के ग्राम मोहनियाखेड़ी के किसान चंद्रेश कहते हैं कि "उन्होंने अपने 25 एकड़ खेत में 7 लाख की लागत से धान की फसल लगाई है। बीते एक माह से बारिश नहीं होने के कारण खेत में मोटी-मोटी दरारें पड़ गई हैं और नीचे से धान की फसल पीली पड़ने लगी है। यही वजह है कि धान की फसल पर टैक्टर चलाने की नौबत आ गई है।" वे आगे कहते हैं कि
"सरकार किसानों को 10 घंटे बिजली देने का दावा कर रही हैं, लेकिन सिर्फ चार से छह घंटे ही बिजली मिल रही हैं। ये बिजली खेतों में सूखती फसल के लिए काफी नहीं है।"
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यह स्थिति रायसेन जिले के सांची, गैरतगंज, बेगमगंज तहसील के गांवों में अधिक देखने को मिल रही है, क्योंकि इन क्षेत्रों में सिंचाई के लिए कोई भी बड़ी परियोजना मौजूद ही नहीं हैं।
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खेतों में सूखा सोयाबीन, ग्राम बावड़ीखेड़ा जिला देवास
देवास जिले के बावड़ीखेड़ा गांव के विपुल कहते हैं "अगस्त माह में केवल 10 दिन ही बारिश हुई बाकि पूरा महीना सूखा रहा। कम अवधी में तैयार होने वाले सोयाबीन में फली आई थी जो सूख चुकी है और जहां लंबी अवधी वाला सोयाबीन बोया था वहां गर्मी से फूल सूख कर गिर गया है। "
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सीहोर जिले के रोलागांव में निलेश अपने खेत में लगे सोयाबीन का पौधा हमें दिखाते हैं और कहते हैं कि
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"बारिश न होने की वजह से पौधों पर इल्लियों का भयंकर प्रकोप हुआ है, हम तीन बार दवा का छिड़काव कर चुके हैं लेकिन जब तक बारिश नहीं होगी दवा असर नहीं करेगी। फसल से मुनाफा तो छोड़ दीजिए लागत बढ़ने से हम उल्टा घाटे में रहने वाले हैं।"
समय पर किसानों को सचेत कर फसलों को बचाया जा सकता था?
मेंगराकलां में 22 एकड़ जमीन पर सोयाबीन और खरीफ की अन्य फसलें (दाल और तिलहन) उगाने वाले गनपत डोदिया कहते हैं कि "यदि हमें मौसम की तब्दीली की जानकारी पहले मिल गई होती तो हम अतिरिक्नुत सिंचाई कर नुकसान को कम कर सकते थे। "
इसी गांव के राजेंद्र रवि की बहन की शादी चार माह बाद होने वाली थी, फसल अच्छी होती तो वो धूमधाम से अपनी बहन की शादी करते लेकिन अब या तो उन्हें कर्ज़ लेना होगा या शादी की तारीख आगे बढ़ानी पड़ेगी। गनपत डोदिया की बात का समर्थन करते हुए राजेंद्र कहते हैं
"कृषि विभाग से पहले मौसम की जानकारी मोबाइल पर कॉलया मैसेज के माध्यम से मिल जाती थी, लेकिन कोरोना के बाद से जानकारी मिलना बंद हो चुकी हैं, इसकी शिकायत हम कई बार सीएम हेल्पलाइन पर कर चुके हैं, लेकिन सुनवाई नहीं हुई है।"
अल नीनो के प्रभावी रहने से अगस्त के महीने में बारिश का अभाव रहा, इस वजह से मध्य प्रदेश के 25 से ज्यादा जिलों में खरीफ फसलों (सोयाबीन, धान, मक्का, ज्वार, तिहलन और दल्हन) को नुकसान हुआ है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी यह माना है कि राज्य ने पिछले 50 सालों में सूखे का ऐसा संकट नहीं देखा है।
सीएम शिवराज सिंह चौहान ने आपातकालीन समीक्षा बैठक में कहा कि
"सूखा ग्रस्त जिलों में कलेक्टरों को सर्वे कर नुकसान का आंकलन कर रिपोर्ट सौंपने के निर्देष दिए गए हैं। किसानों को घबराने की जरूरत नहीं हैं सिंचाई के लिए डैम से नदी और नहरों में पानी छोड़ने के निर्देश दे दिए गए हैं। साथ ही जरूरत पड़ने पर फसलों का सर्वे कराकर मुआवज़े के साथ फसल बीमा राशी दी जाएगी। "
प्रदेश में जलवायु परिर्वतन की वजह से कम बारिश होने से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरा रही हैं, अगस्त माह पूरी तरह से खाली गया है और सिंतबर माह में अच्छी बारिश नहीं हुई तो धान और सोयाबीन समेत सभी खरीफ फसलें पूरी तरह नष्ट हो जाएंगी। मौसम विभाग के अनुसार मध्य प्रदेश में एक जून से अब तक औसत से 17 फीसदी कम बारिश हुई है। अगस्त माह में तो बारिश पर विराम ही लगा गया था, जबकि सिंतबर में भी कम बारिश होने का अनुमान हैं।
अगस्त में पड़ी गर्मी की वजह से सोयाबीन के पौधे कुछ इस तरह पीले पड़ गए हैं, ग्राम रोलागांव, जिला सीहोर
फसल नष्ट होने के बाद मुआवज़े और बीमे की भागदौड़
डोबरा जागीर गांव के किसान अजय ठाकुर कहते हैं कि
"मैंने अपने 22 एकड़ खेत में सोयाबीन और धान बोया है, फसल को जो नुकसान हुआ वो तो भूल ही गया हूं, अब लोन चुकाने की चिंता हो रही है, सहकारिता बैंक की तरफ से मैसेज आने लगे हैं, कहां से भरेंगे?"
बात करते करते उनकी आंखें भीग जाती है और कुछ देर चुप रहने के बाद आगे कहते हैं कि "बीमा कंपनियां भी अपनी जेब भरने में लगी हुई हैं, हर सीजन में 8640 रू. बीमा के नाम ले लेती है और जब बीमा राशि देने की बारी आती है तो गायब हो जाती हैं। फसल खराब होने पर बीमा कंपनी को 72 घंटे के भीतर सूचना देना होता है, जो टोल फ्री नंबर 18001024088 बीमा कंपनी ने दिया है उसपर लगातार कॉल कर रहा हूं, लेकिन फोन नॉट रीचेबल आ रहा है।"
भोपाल जिले में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए सरकार द्वारा रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी को अधिकृत किया गया है। इस कंपनी के भोपाल जिला अधिकारी आकाश पराशर कहते हैं कि
"किसानों को खरीफ सीजन में तय प्रीमियम दर का 1.5 प्रतिशत हिस्सा ही जमा करना होता हैं, बाकि का 6.5 हिस्सा केंद्र और राज्य सरकार मिलकर देती हैं। फसल का बीमा करते समय किसानों को कवर नोट या स्लिप दी जाती है।" वे आगे कहते हैं कि "यह बात सही हैं कि किसानों को नुकसान मूल्यांकन प्रक्रिया के लिए 72 घंटे के अंदर जिला प्रशासन, बीमा कंपनी को सूचना देती होती है, इसके लिए कंपनी और सरकार द्वारा टोल फ्री नंबर जारी किए गए हैं। आपदा आने पर कई बार ऐसा होता हैं कि बीमा क्लेम के लिए जारी किए गए टोल फ्री नंबर बिज़ी और नाॅट रिचेबल आते हैं। इसका यह मतलब नहीं हैं कि हम बीमा क्लेम ही नहीं देते हैं, नंबर बिज़ी और नाॅटरिचेबल आने के पीछे कई तरह की तकनीकी समस्या होती हैं, जिन्हें वक्त पर सुधार भी लिया जाता हैं।"
मप्र सहकारिता विभाग के संयुक्त आयुक्त संजय दलेला कहते हैं कि
"जी हां यह बात सही हैं कि किसानों को ऋण चुकाने के लिए मैसेज भेजे जा रहे हैं, लेकिन यह मैसेज भेजने का मकसद सिर्फ किसानों को सूचना पहुंचाना है न कि उन पर ऋण चुकाने के लिए दबाव बनाना।"
समय पर मिली वैज्ञानिकों की सलाह और किसानों ने कम उठाया नुकसान
भोपाल जिला पंचायत के बैरसिया ब्लाॅक में आने वाले गांव कोलूखेड़ी में कई किसान ऐसे भी जिन्हें कृषि और मौसम विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा जारी की गई सलाह समय पर मोबाइल फोन के माध्यम से मिल गई थी। इससे किसानों को फायदा हुआ है, इस जानकारी के आधार पर किसानों को अपने नुकसान को कम करने में मदद मिली हैं। कोलूखेड़ी के किसान मुंशीलाल कहते हैं कि
"रबी के सीजन के बाद से हमें वैज्ञानिकों की सलाह मोबाइल पर काॅल के माध्यम से मिल रही थी, वैज्ञानिकों की सलाह को मानते हुए हमने समय से पहले ही अपनी 7 एकड़ ज़मीन पर दाल और सोयबीन की फसल बो दी थी। हमने खेतों में नमी बनाए रखने के लिए अतिरिक्ति सिंचाई भी की थी। इससे हमें यह फायदा हुआ कि जब अगस्त माह में बेमौसम गर्मी पड़ी, तब तक हमारी फसल पककर तैयार हो चुकी थी। अब हम कटाई की तैयारी कर रहे हैं।"
कोलूखेड़ी गांव के प्रेमलाल, दीपक कुशवाह, दिलीप मालवीय समेत दर्जनों किसान मुंशीलाल की इस बात से सहमत नज़र आते हैं।
किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग, प्रभारी संयुक्त संचालक बीएल बिलैया कहते हैं कि "ऐसा नहीं हैं कि किसानों को जलवायु परिवर्तन की जानकारी नहीं दी जा रही है। यदि किसानों के पास समय पर सूचनाएं नहीं पहुंच रही हैं तो हम अपने सॉफ्टवेयर के डेटा को फिर से अपडेट करवाएंगे और जागरूकता शिविरों की संख्या में इजाफा करने की कोशिश करेंगे।"
केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान भोपाल के वैज्ञानिक डाॅ. बीएम नंदेरे कहते हैं कि "किसानों को दूरदर्शन, मोबाइल कॉल, मैसेज और जागरूकता शिविर के माध्यम से सूचनाएं पहुंचाने के साथ ही जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा हैं। "
किसान संगठनों की तैयारी
होशंगाबाद जिले के बनखेड़ी के पास ग्राम मछेरा खुर्द के निवासी और राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के अध्यक्ष व किसान नेता शिवकुमार शर्मा कहते हैं कि
"पिछले दो साल से मध्य प्रदेश के किसानों को काफी नुकसान जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है, लेकिन न तो सरकार कुछ कर रही है और न ही वैज्ञानिकों द्वारा दी जा रही सलाह समय पर किसानों के पास पहुंच पा रही है। यदि सलाह समय पर पहुंचे तो किसानों को काफी मदद मिल सकती है।" वे कहते हैं कि अभी किसानों की धान की फसल को 60 प्रतिशत और सोयाबीन की फसल को करीब 50 प्रतिशत तक नुकसान हुआ है, जिन की फसल कट गई थी, उन्हें भी नुकसान हुआ है और जिनकी फसल पकने के लिए तैयार थी, उन्हें भी नुकसान हुआ है। हर साल यहीं होता है कि किसानों को नुकसान होता है और बीमा कंपनियां क्लेम नहीं देती, इतना ही नहीं सरकार भी मुआवज़े के नाम पर खान-पूर्ति करती है, आधे लोगों को मुआवजा मिलता है और आधे वंचित रह जाते हैं। वे आगे कहते हैं कि अभी हमने सरकार को ज्ञापन दिया है और जल्द से जल्द सर्वे कराकर मुआवजा राशि किसानों को वितरित करने की मांग की है, ताकि उनके नुकसान की भरपाई हो सके। जिन किसानों ने कर्ज लेकर खेती की है, सरकार उनका कर्ज माफ करें, इसके लिए रूपरेखा तैयार की जा रही हैं, यदि मुआवजा मिलने में देरी और कर्ज माफ नहीं किया जाता हैं तो चरणबद्व तरीके से आंदोलन किया जाएगा।"
वहीं भारतीय किसान संघ के बैरसिया तहसील, अध्यक्ष देवेंद्र सिंह दांगी कहते हैं कि "अभी हम देख रहे हैं कि प्रशासन किस स्तर पर कार्रवाई कर रहा हैं, उसके बाद ही आगे की रूपरेखा तैयार कर आंदोलन करेंगे। वे कहते हैं कि संघ की हाल ही में हुई बैठक में निर्णय हुआ हैं कि सरकार को ज्ञापन देंगे और इसमें किसानों को उचित मुआवजा मिले, सर्वे का आंकालन सही तरह से हो और मौसम और कृषि वैज्ञानिकों द्वारा दी जा रही सलाह किसानों तक सही समय पर पहुंचे। विभाग कहता हैं कि हम फोन काॅल, मैसेज और शिविर लगाकर किसानों को जागरूक कर रहे हैं, लेकिन ज़मीन पर विभाग के प्रयास न के बराबर दिखाई देते हैं।
अभी यह करें किसान
किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग, प्रभारी संयुक्त संचालक बीएल बिलैया कहते हैं कि
"अभी फसलों को लेकर बहुत ज्यादा चिंताजनक स्थिति नहीं, लेकिन अगर अगस्त माह की तरह सितंबर में पानी नहीं गिरा तो परेशानी बढ़ जाएगी और फसलों को काफी नुकसान होगा। खासकर ऐसी जमीन जहां पर काली मिटटी नहीं है। हल्की मिटटी है या पथरीली जमीन है, वहां पर सोयाबीन से लेकर अन्य फसलों पर विपरीत असर देखने को मिल रहा है। इस तरह के हालात में हम किसानों से संपर्क कर रहे हैं। किसानों को हमने सलाह दी है कि वह फव्वारा सिंचाई के माध्यम से फसलों को पानी दें। जहां काली मिटटी वाली जमीन हैं वहां पर फिलहाल चिंता की बात नहीं हैं, लेकिन आगामी एक सप्ताह में अच्छी बारिष नहीं हुई तो हालात खराब हो जाएंगे और इसका उत्पादन पर बुरा असर पड़ेगा। वर्तमान में फूल से फली बनने की अवस्था हैं। इस अवस्था में एक बड़ी चिंता होती है, क्योंकि इस तरह की स्थिति में हमें उत्पादन में गिरावट और नुकसान की स्थिति देखने को मिलती है।"
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