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दिबांग अभ्यारण को टाईगर रिज़र्व बनाने के खिलाफ क्यों है अरुणाचल का इदु मिशमी समुदाय?

05:21 PM May 29, 2023 IST | Shishir Agrawal
दिबांग अभ्यारण को टाईगर रिज़र्व बनाने के खिलाफ क्यों है अरुणाचल का इदु मिशमी समुदाय

दिसंबर का महीना और साल था 2012, अरुणांचल प्रदेश की दिबांग घाटी में स्थानीय इदु मिशमी लोगों ने बाघ के 3 बच्चे देखे. लोगों ने तुरंत वन विभाग को सूचना दी और उन्हें रेस्क्यू कर लिया गया. मगर यह मामला केवल इतना ही नहीं था. इस घाटी में बाघ की मौजूदगी यहाँ के लोगों और प्रशासन के लिए एकदम नई बात थी. सरकार की माने तो यह पहला मौका था जब इस घाटी में बाघ की उपस्थिति दर्ज की गई थी. फिर आगे जांच हुई और सरकार ने यह तय किया कि वह दिबांग वाइल्ड लाइफ़ सेंचुरी को टाईगर रिज़र्व में तब्दील कर देगी. यह खबर स्थानीय आदिवासी समुदाय इदु मिशमी लोगों के लिए अछि खबर नही थी और इसलिए उन्होंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया. 

कौन हैं इदु मिशमी?

Know about Idu Mishmi tribe of Arunachal Pradesh, in Hindi
अरुणाचल प्रदेश की दिबांग घाटी हरे-भरे जंगलों, शक्तिशाली नदियों, दुर्लभ-स्थानिक वन्यजीवों, इदु मिश्मी समुदाय का घर हैफोटो नीलम अहलुवालिया

इदु मिशमी (Idu Mishmi) एक आदिवासी जनजाति है जो मिशमी समूह का हिस्सा हैं. इस समूह के अंतर्गत 2 अन्य जनजाति डिगरू और मीजू (Digaru and Miju) आती हैं. इस जनजाति को यह नाम तिब्बत से लगी हुई मिशमी घाटी के नाम पर मिला है. ये लोग यहीं निवास करते हैं. साल 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी संख्या 12 हज़ार के करीब है. इस जनजाति का प्रकृति और वन्य जीवों से सांस्कृतिक रिश्ता भी है.अधिकतर जनजातियों की तरह शिकार करना इनका पारंपरिक काम है मगर जानवरों से जुडी हुई आस्था के चलते बहुत से जानवरों को मारना वर्जित है. बाघ उसमें से एक है. मिशमियों की मान्यता के अनुसार बाघ और उनकी उत्पत्ति एक ही माँ से हुई है इसलिए बाघ को वह ‘बड़े भाई’ की तरह देखते हैं. इनकी भाषा ‘मिशमी’ को यूनेस्को द्वारा लुप्त प्राय घोषित किया गया है. 

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क्या है टाइगर रिज़र्व बनाने का प्लान?

साल 2014 में वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया और नेशनल टाइगर कन्ज़र्वेशन अथौरिटी (NTCA) ने कैमरा ट्रैप के ज़रिये घाटी में बाघों की मौजूदगी दर्ज की थी. स्टडी के अनुसार इस घाटी में 336 वर्ग किलोमीटर के दायरे में 11 बाघों की मौजूदगी दर्ज की गई है. इस स्टडी को ही यहाँ टाइगर रिज़र्व बनाने के लिए प्राथमिक सबूत और तर्क की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. साल 2022 में एनटीसीए की एक मीटिंग में दिबांग वाइल्ड लाइफ सेंचुरी को टाइगर रिज़र्व बनाने का फैसला किया गया. टाइगर प्रोजेक्ट के 50 साल होने के मौके पर एनटीसीए के प्रमुख एसपी यादव ने कहा कि वह वर्तमान टाइगर रिज़र्व की संख्या (53) को बढ़ाना चाहते हैं. छतीसगढ़ का गुरु घासीदास और अरुणांचल प्रदेश के दिबांग वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के लिए जल्द ही सूचना जारी की जाएगी.  

यदि यह टाइगर बनता है तो बाघों की संख्या के लिहाज से यह अरुणांचल प्रदेश का सबसे बड़ा टाइगर रिज़र्व होगा. इसके अलावा यह भारत का ऊंचाई बना पहला टाइगर रिज़र्व होगा. मंत्रालय के अनुसार इस रिज़र्व का क्षेत्रफल 4149 वर्ग किलोमीटर होगा जो भारत में सबसे ज़्यादा है. यानि क्षेत्रफल के लिहाज से भी यह सबसे बड़ा टाईगर रिज़र्व होगा.

क्यों है प्रोजेक्ट का विरोध?

यह समुदाय की सांस्कृतिक संस्था इदु मिशमी कल्चरल एंड लिटरेरी सोसाइटी द्वारा इस प्रोजेक्ट का विरोध किया जा रहा है. समिति का कहना है कि उन्होंने अपना विरोध वाइल्ड लाइफ सेंचुरी बनाने के प्रस्ताव के समय से ही दर्ज करवाया था और अब सरकार इसे टाइगर रिज़र्व बनाने जा रही हैं. समुदाय के लोगों का मानना है कि सेंचुरी के टाइगर रिज़र्व बनने के बाद जंगल में उनके अधिकार और भी सीमित कर दिए जाएँगे जिससे उनकी आजीविका पर असर पड़ेगा. 

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समिति ने प्रेस नोट जारी करते हुए सरकार पर वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट और भूमि अधिग्रहण एक्ट के प्रावधानों का पालन न करने का आरोप लगाया है. समिति के सदस्यों का कहना है कि वाइल्ड प्रोटेक्शन एक्ट और फ़ॉरेस्ट राइट एक्ट के तहत सरकार को इस फैसले को लेने से पहले स्थानीय लोगों से बैठक आयोजित करवा कर बात करनी चैये थी मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया है. प्रेस नोट में समिति ने कहा कि “हम सभी को याद दिलाना चाहते हैं कि गुवाहाटी उच्च न्यायालय की ईटानगर स्थायी पीठ में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई थी, और इस मामले का निपटारा राज्य सरकार को मुद्दों पर ध्यान देने और स्थानीय लोगों सहित एक समिति की मदद से मामले पर एक रिपोर्ट बनाने के निर्देश के साथ किया गया था.” 

स्थानीय लोगों की इस समिति ने सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाया. अरुणांचल प्रदेश के ही नमदाफा राष्ट्रिय उद्यान का ज़िक्र करते हुए कहा, “नमदाफा को टाइगर रिज़र्व साल 1983 में घोषित किया गया था मगर आज यहाँ मुश्किल से कोई टाइगर बचे हैं. एनटीसीए इन 40 सालों से किसका संरक्षण कर रही थी? लोगों का कहना है कि जब हमारी मान्यताओं और प्राकृतिक कारणों से पहले से यहाँ बाघों का संरक्षण हो रहा है तो इसे टाइगर रिज़र्व बनाने की क्या ज़रूरत है?

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Shishir Agrawal

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Shishir is a young journalist who like to look at rural and climate affairs with socio-political perspectives. He love reading books,talking to people, listening classical music, and watching plays and movies.

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