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GRFC 2023 रिपोर्ट: बीते वर्ष 25.8 करोड़ लोग भुखमरी से जूझते रहे

11:09 PM May 09, 2023 IST | Shishir Agrawal
grfc 2023 रिपोर्ट  बीते वर्ष 25 8 करोड़ लोग भुखमरी से जूझते रहे

Global Report On Food Crisis (GRFC 2023) | साल 2022 पूरे विश्व के लिए अस्थिरता का साल रहा. यह वो साल था जब एक लम्बे अंतराल के बाद भारत के पड़ोस में स्थित अफगानिस्तान में सुन्नी इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन तालिबान ने सत्ता में वापसी की. इसी वर्ष यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध शुरू हुआ जिसने पूरी दुनिया को तृतीय विश्व युद्ध की आशंकाओं से डरा दिया. इसके अलावा सुडान, सीरिया, कांगो, इथोपिया, यमन जैसे कई देशों ने प्राकृतिक आपदाओं, युद्ध और अन्य टकरावों के चलते अस्थिरता का सामना किया. इसके कारण जहाँ एक ओर बड़ी संख्या में लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा वहीं दूसरी ओर दुनिया की आबादी के एक बड़े हिस्से की खाद्य सुरक्षा ख़तरे में पड़ गई.

GRFC 2023 खाद्य सुरक्षा पर वैश्विक रिपोर्ट

बीते बुधवार 3 मई को फ़ूड सिक्योरिटी इनफार्मेशन नेटवर्क (FSIN) द्वारा जारी ग्लोबल रिपोर्ट ऑन फ़ूड क्राइसिस (GRFC) 2023 के अनुसार 58 देशों/इलाकों के 258 मिलियन लोगों ने साल 2022 में भीषण अन्न संकट (IPC/CH Phase 3-5) का सामना किया. यह आंकड़ा बीते 7 सालों में सबसे ज़्यादा है. गौरतलब है कि साल 2021 के लिए यह आँकड़ा 193 मिलियन था. रिपोर्ट की भूमिका में लिखते हुए यूएन सेकेट्री जनरल एंटोनियो गुटरेज़ ने लिखा,

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“एक चौथाई से भी अधिक लोग भयंकर स्तर पर भूख का सामना कर रहे हैं. इनमें से कुछ लोग भुखमरी की कगार पर हैं. यह बेहद शर्मनाक है.” 

रिपोर्ट के अनुसार कांगो गणराज्य में इस संकट से जूझने वाले लोगों की संख्या (22.6 मिलियन) सबसे ज़्यादा है. वहीँ अफगानिस्तान में यह संकट मानवीय आपातकाल के स्तर तक पहुँच गया है. इस देश के लगभग 6.1 मिलियन लोग भयानक स्तर (IPC/CH Phase 4) पर भूख का सामना कर रहे हैं. 

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संकट का एशियाई परिदृश्य

इस रिपोर्ट में एशिया के 5 देशों को शामिल किया गया है. अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका के अलावा बांग्लादेश का कॉक्स बाज़ार और पाकिस्तान के बलूचिस्तान, खैबरपख्तून्वा और सिंध प्रान्त इस रिपोर्ट का हिस्सा हैं. रिपोर्ट के अनुसार एशिया के 51.3 मिलियन लोग खाद्य संकट का सामना कर रहे हैं. चिंताजनक बात यह भी है कि इनमें से 28.52 मिलियन लोग केवल 2 देशों पकिस्तान और अफगानिस्तान से हैं. 

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अफ़गानिस्तान 

Afghanistan food crisis

अफगानिस्तान में हाल सबसे ख़राब हैं. यहाँ की लगभग आधी (46 प्रतिशत) जनता अपना पेट भरने के लिए संघर्ष कर रही है. रिपोर्ट बताती है कि अगस्त 2021 में सत्ता में वापसी करने के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान की हालत को बदतर कर दिया है. तालिबानी सरकार ने सत्ता में आने के बाद से ही विदेशी मुद्रा को बढ़ाने के पर्याप्त प्रयास नहीं किए. जिससे इस देश में आनाज और अन्य ज़रूरत के सामान के आयात पर बुरा असर पड़ा है. इसका परिणाम यह हुआ कि अफगानिस्तान में आनाज, ईधन और उर्वरकों के दाम में बेतहाशा वृद्धि हुई है. 

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हालाँकि इस हाल का एक प्रमुख कारण अमेरिका और अन्य देशों द्वारा अफगानिस्तान पर लगाये गये प्रतिबन्ध भी थे. अगस्त 2022 में जारी एक बयान में ह्युमन राइट्स वॉच ने कहा कि “अफगानिस्तान के मानवीय संकट से तबतक नहीं निपटा जा सकता जब तक कि यूनाइटेड स्टेट्स और अन्य देशों द्वारा अफगानिस्तान के बैंकिंग सेक्टर पर लगाये गए प्रतिबंधों को आवश्यक आर्थिक गतिविधियों और मानवीय सहायता (humanitarian aid) के लिए कुछ ढील नहीं दी जाती.” अलजज़ीरा में छपे अपने एक लेख में अफगानिस्तान के अंतरिम विदेश मंत्री मौलवी आमिर खान मुत्तकी ने कहा कि वो अमेरिका के साथ काम करने के लिए तैयार हैं मगर पहले उन्हें प्रतिबन्ध हटाने होंगे.

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इसके अलावा अफगानिस्तान में पड़ी मौसम की मार ने स्थिति को और बदतर बना दिया. रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान के 34 में से 25 प्रान्तों ने गंभीर या उससे भी बदतर सूखे का सामना किया. इसी प्रकार जुलाई और सितम्बर के दरम्यान हुई बेमौसम बारिश से उपजी बाढ़ ने 21 प्रान्तों की फसल को कटाई से पहले ही ख़राब कर दिया.     

श्रीलंका

sri lanka food crisis

बीते साल श्रीलंका में भयानक आर्थिक संकट पैदा हो गया. यह संकट मुद्रा की घटती कीमत और बढ़ती महंगाई के कारण पैदा हुआ जिसका असर सीधे तौर पर देश के ईधन भण्डार पर हुआ. विदेशी मुद्रा के आभाव में श्रीलंका में ईधन का संकट पैदा हो गया जिससे आनाज सहित सभी ज़रूरी सामानों के दाम आसमान पर पहुँच गए. यही कारण था कि बीते साल श्रीलंका का अनुअल फ़ूड प्राइस इन्फ्लेशन रेट पाँचों देशों में सबसे ज़्यादा (64 प्रतिशत) रहा.

श्रीलंका के लोगों के लिए बीते साल के हर दिन किसी साल जितने लम्बे थे. अपने बच्चों का पेट भरना यहाँ के परिवारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई. सेव द चिल्ड्रन नामक संस्था द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार श्रीलंका में आधे से अधिक परिवार ने अपने बच्चों के खाने की मात्रा कम कर दी. हालात इतने बुरे हैं कि 10 में से 9 परिवार अपने बच्चों को पौष्टिक भोजन नहीं दे पा रहे हैं. 

बांग्लादेश और म्यांमार 

food security bangladesh

यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ पीस के अनुसार बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार में 9 लाख 50 हज़ार से भी अधिक रोहिंग्या मुस्लिम रह रहे हैं. ये लोग साल 2017 में म्यांमार में हुए विस्थापन का शिकार हैं. फ़ूड क्राइसिस रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश और म्यांमार में संघर्ष और अस्थिरता फ़ूड इनसिक्योरिटी का प्रमुख कारण रहे हैं. दोनों देशों के लगभग 16.5 मिलियन लोग विस्थापन, अस्थिरता और एक जगह से दूसरी जगह जाने पर लगे प्रतिबंधों के कारण भूख के संकट से प्रभावित हुए हैं. इसके अलावा म्यांमार में अचानक आई बाढ़ ने भी यहाँ के लोगों को प्रभावित किया है. 

पाकिस्तान

Pakistan food security

पकिस्तान अपनी राजनैतिक अस्थिरताओं के लिए जाना जाता है. इसका असर यहाँ की आम जनता और उनकी सभी तरह की ज़रूरतों पर भी पड़ता है. मगर साल 2022 में पकिस्तान ने अब तक की सबसे भयानक बाढ़ का सामना किया. रिपोर्ट के अनुसार पकिस्तान में बीते 30 साल में हुई बारिश से 3 गुना ज़्यादा बारिश होने के चलते आई बाढ़ और भू-स्खलन ने लगभग 33 मिलियन लोगों को प्रभावित किया. यूनिसेफ़ के अनुसार इस दौरान 9.6 मिलियन बच्चों को मानवीय मदद की ज़रूरत थी. बाढ़ के अलावा मार्च और अप्रैल 2022 में हीट वेव्स ने रबी की फसल को भारी नुकसान पहुँचाया था. रिपोर्ट के अनुसार इन प्राकृतिक आपदाओं के चलते 8.6 मिलियन लोग आईपीसी फेज़ 3 के स्तर की फ़ूड इनसिक्योरिटी से जूझ रहे हैं. 

रिपोर्ट के आंकड़ों को देखने पर पता चलता है कि साल 2022 लगातार चौथा साल था जब फ़ूड इनसिक्योरिटी झेलने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है. एशिया में 2 देशों (अफगानिस्तान और बांग्लादेश) को इस रिपोर्ट में लगभग हर साल शामिल किया जाता है. इन देशों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार यहाँ भूख का संकट झेलने वाले लोगों की संख्या साल 2021 के मुक़ाबले 2022 में 8.6 मिलियन से बढ़कर 21.1 मिलियन पहुँच गई है. रिपोर्ट की माने तो आगे आने वाले दिनों में इसमें राहत मिलने के आसार नहीं नज़र आते हैं.

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