मनोज मिश्रा, जिन्होंने अपना पूरा जीवन यमुना की सफाई को समर्पित कर दिया
यमुना जिये अभियान के संयोजक मनोज मिश्रा का 4 जून को भोपाल में कोविड-19 की वजह से निधन हो गया, उनकी उम्र 70 वर्ष थी। मनोज मिश्रा ने अपना पूरा जीवन यमुना नदी को बचाने और उसके पुनर्जीवन के लिए लड़ने में बिता दिया।
मनोज मिश्रा के निधन की खबर उनके परिवार ने ट्विटर पर साझा की-
यूपी के मथुरा में जन्में मनोज मिश्रा बचपन से ही प्रकृति से लगाव रखते थे, अलहाबाद युनिवर्सिटी से पढ़ने के बाद वर्ष 1979 में मनोज मिश्रा ने मध्यप्रदेश काडर से इंडियन फॉरेस्ट सर्विस ज्वाईन की और देश भर में अपनी सेवाएं दी।
वर्ष 2001 में मनोज मिश्रा ने स्वैक्षिक रिटायरमेंट ले लिया, और वर्ष 2007 में यमुना जियो अभियान की शुरुवात की, जिसका मकसद यमुना नदी का पुनर्उत्थान था।
मनोज मिश्रा बेहद ही शांत प्रवृत्ति के इंसान थे, और अपने काम के प्रति सजग और निष्ठावान। उन्होंने यमुना नदी को बचाने के लिए कई न्यायिक लड़ाईयां लड़ी।
सड़क से लेकर कोर्ट तक मिश्रा ने यमुना नदी को बचाने के लिए अपनी आवाज़ बुलंद की। उन्हीं की तटस्थता का नतीजा था कि 13 जनवरी 2015 को एनजीटी ने यमुना को साफ करने के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद भी मिश्रा का संघर्ष जारी रहा।
एक साल बाद दिल्ली में यमुना फ्लडप्लेन्स पर आर्ट ऑफ लिविंग के इवेंट को मिश्रा ने कोर्ट में चैलेंज किया। उन्होंने देश को बताया कि नदी के फ्लडप्लेन पर इस तरह का इवेंट पर्यावरण के लिए कितना हानीकारक है। एनजीटी ने उनकी पिटीशन पर एक्शन लेते हुए आर्ट ऑफ लिविंग पर 5 करोड़ का जुर्माना लगाया था।
देश में कोई भी पर्यावरण की समस्या होती, मनोज मिश्रा की आवाज़ उसमें बुलंद होती थी। वो सभी मुद्दों पर मीडिया में मुखर रहते, उनकी एक्सपर्ट एडवाईज़ हर अखबार में जगह बनाती।
नदियों के विनाश से वो बहुत ज्यादा व्यथित रहते, उन्हेंने रिवर माईनिंग, सैंड माईनिंग और फ्लडप्लेंस में इल्लीगल कंस्ट्रक्शन के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी।
मनोज मिश्रा का कोविड से निधन एक झटके की तरह है क्योंकि हम यह मान चुके थे कि कोविड अब खत्म हो चुका है। यह घटना हम सबके लिए एक चेतावनी की तरह है।
मनोज मिश्रा के काम को आगे बढ़ाने की ज़रुरत है क्योंकि यमुना आज भी साफ नहीं हो सकी है। अगर एक व्यक्ति ने अपना पूरा जीवन एक काम को सौंपा है तो आप समझ सकते हैं कि यह काम कितना ज़रुरी है।
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